। । चाहत । । 
चाह कर तुझे, ना चाहना छोड़ पाया मैं नादान  ,
शायद चाहत ने मुझे, सिर्फ़ तुझे चाहना सिखलाया। 
। । उम्मीद । । 
उम्मीदों की किश्ती में प्यार का  समन्दर पार करने चले थे,
ऐ नादान, 
ये किश्ती किस पल किस क्षण टूटेगी, 
ये सोचे बिना, 
उसे चाहने चले थे,
गर टूटी भी तो क्या हुआ,
तू खुश हो ले,
जशन मना क्यूकि  
हर आशिक़ को प्यार   में डूब जाना हासिल नहीं होता। 
। । हिसाब । । 
क्या करू गिला , और करु क्या शिकवा-शिकायत,
दिया क्या तुझे, और 
क्या पाया तुझसे प्यार में,
ये नादान , हिसाब का पक्का तो नहीं, 
पर सीखा  है शायद इतना जरूर ही 
की प्यार में देना ही होता है, 
बिना पाने की कुछ ख्वाइश  लिए।   
- V. P. "नादान"



 
 
 
 
 
 
 
 
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