पढ़ा था मैंने कविताओं में की,
परवाना शमा के ख़त्म होने से पहले ही,
दे देता अपनी जान है।
कहाँ है इतनी रूमानियत इस किस्से में ,
जो कवियों को दिखाई देती है,
और मुझे नहीं।
मुझे तो लगता था महज ये,
बेवकूफियां हैं उस परवाने की,
जो जानकर भी,
की वो जल जाएगा,
ग़र गया करीब शमा के,
जाता है और दे देता अपने प्राण है।
सुना था मैंने की सूरज के डूबते ही,
कमल के संग भँवरा भी क़ैद हो जाता है।
कौतूहल सी होती थी,
क्यों नहीं उड़ जाता वो ,
आखिर क्या है, की
कमल की क़ैद में भी वो मुस्कुराता है ?
फिर जैसे वे सारी बातें मुझे,
एक झटके में समझ आने लगीं।
जब तेरे चेहरे पर खेलती एक मुस्कराहट के आगे,
मुझे संसार की सारी दौलत भी बेमानी लगी।
जब तेरी हर एक छोटी-बड़ी बातें,
मुझे बहुत हंसाने लगी।
जब हर वक़्त तेरी, बस तेरी,
याद मुझे बड़ी आने लगी।
क्या ये ही,
इश्क़ है?
क्या ये ही,
प्यार है?
और ये ही,
मुहब्बत है?
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