तुम्हारे होठों की छूअन जैसे,
ओस की बूँदें  अधखिले गुलाब पे हो । 
तुम्हारे नयनो की गहराई जैसे,
शांत, निर्मल वो अतल सी झील हो। 
तुम्हारे जिस्म की खुशबू  जैसे,
पहली बारिश के बाद धरती से  उठती सोंधेपन हो। 
 तुम्हारी मीठी-मीठी बातें  जैसे,
कोयल ने सिखाया बातें करना  हो। 
तुम्हारे हवा में लहराते केश जैसे,
काले घनघोर बादल आयें तन-मन भिगाने हो। 
तुम्हारी प्यारी सी हँसी जैसे,
नवयौवना के नाजूक कलाईयों पे खनकती चूड़ियाँ हों। 
कहीं तुम दिवा-स्वप्न तो नहीं,
या फिर मेरी कोई एक मधुर कल्पना। 
कहीं तुम कोई आसमान की परी तो नहीं,
या फिर मैं हूँ  पहुँचा किसी स्वर्ग-लोक  में। 
 -V. P. "नादान"  

 
 
 
 
 
 
 
 
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