lost soul 2

Saturday, 4 October 2014

तुम्हारे होठों की छूअन जैसे....!


तुम्हारे होठों की छूअन जैसे,
ओस की बूँदें अधखिले गुलाब पे हो । 

तुम्हारे नयनो की गहराई जैसे,
शांत, निर्मल वो अतल सी झील हो। 

तुम्हारे जिस्म की खुशबू  जैसे,
पहली बारिश के बाद धरती से उठती सोंधेपन हो। 

 तुम्हारी मीठी-मीठी बातें  जैसे,
कोयल ने सिखाया बातें करना हो। 

तुम्हारे हवा में लहराते केश जैसे,
काले घनघोर बादल आयें तन-मन भिगाने हो। 

तुम्हारी प्यारी सी हँसी जैसे,
नवयौवना के नाजूक कलाईयों पे खनकती चूड़ियाँ हों। 

कहीं तुम दिवा-स्वप्न तो नहीं,
या फिर मेरी कोई एक मधुर कल्पना। 

कहीं तुम कोई आसमान की परी तो नहीं,
या फिर मैं हूँ पहुँचा किसी स्वर्ग-लोक  में। 
 
 -V. P. "नादान"

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