शायद तेरी तरह मुझे इश्क़ करना ही ना आ पाया,
शायद तेरी तरह मुझे झूठी हँसी बिखेरना ही ना आ पाया।
शायद तेरी तरह मुझे महत्वाकांक्षाओं का पहाड़ चढ़ना ना आ पाया,
शायद तेरी तरह मुझे चेहरे पर हर रोज़ एक नया नाक़ाब ओढ़ना ना आ पाया।
तुम कब के थे गए जिस रास्ते से, अंजान, हँसते खेलते बेखबर से,
और हमें आज भी उस मोड़ पे, तेरा इंतजार करना तक छोड़ना ना आ पाया।
- V. P. "नादान"
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