इन धडकनों के सन्नाटों में कई कराहते आवाज छूपे हैं।
जाना ही था तुम्हे, सोचा होता जो पहले कभी,
तो ये उदासियों का अँधेरा ना छाया होता मेरे खुशियों के उजालों पे।
पर शायद तुम्से किसी मोड़ पर टकराना लिखा था तक़दीर ने,
और किसी दिन किसी कलम से यूँ ही अधूरा लिख छोड़ा था,
या बैठे बैठे दिल्लगी करने को शायद मैं ही मिला था।
जिंदगी इस कदर कड़वाहटों से भर जाएगी,
सोचा ना था,
तेरी तन्हाई मौत से बदतर हो जाएगी,
जाना ना था,
ना जीते हैं, ना मरते हैं,
बस पल-पल यूँ तुम्हे याद किया करते हैं।
चाहता तो हूँ, चीख-चीख कर लूँ नाम तेरा,
जोरों से पुकारूं, जब तक सुन कर तुम आ ना जाओ,
पर फिर उन आवाजों को दिल की गहराइयों में दफ़न कर देता हूँ,
और यादों को यादों में ही खत्म किये देता हूँ।
कभी सोचा था, लिखेंगे हम अपनी प्रेम-कहानी अजर-अमर ,
पर बनाया था घरौंदा प्यार का, समंदर के तट पर,
एक लहर आई और नामों- निशाँ ही मिट गया मेरे संसार का,
कोशिश भी की अथक, क़तरा-क़तरा सम्भाला भी,
पर आख़िर होश आया, ना तुम थे, ना प्यार का वो अपना घरौंदा ही था कहीं।
बस था अकेला खड़ा मैं, चट्टानों के बीच में,
लहरें आती-जाती छूती रहीं पाँवों में,
और थपेड़े बिखरती रहीं टकरा कर चट्टानों में,
वक़्त भी बीतता चला रहा बस अपनी ही धून में।
बस ठहरा रह गया मैं,
शायद तेरी याद में,
शायद तेरी आवाज़ में,
शायद तेरे इंतज़ार में,
या शायद ............. !!!!
- V.P. "नादान"
दिंनाक-१६.०९.२०१४
well written!
ReplyDeleteहौसला आफज़ाई के लिए बहुत- बहुत शुक्रिया मधुसूदन जी
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