आती है तो आती ही है, जाने मुझे इतना तड़पाती क्यूँ है?
लाख कोशिश करता भी हूँ भूलने की हर तरह,
तेरा चेहरा ख्वावों में भी मुझे सताती क्यूँ है?
जागती आँखों में भी तेरे सपने आते क्यूँ हैं?
हर दूसरी लड़की के चेहरे में तू नजर आती क्यूँ है?
बगिया की कोयल भी अब गाती नहीं है,
और फूल भी जाने क्यों पहले-से मुस्कुराते नहीं हैं?
चाँद की रौशनी भी अब बदन को छू जाती नहीं है,
नदी तट पे लगी नौका तेरे इन्तजार में रुकी-रुकी रह जाती क्यूँ है?
दिल मेरा ज़िद्दी बच्चे सा तुझे पाने को ललकता ही क्यूँ है?
चाह कर भी तेरी यादेँ दिल से मेरे जाती नहीं हैं।
कह दिया बिल्कुल सहज-सा,
भूल जाओ तूम मुझे।
मैं भी भूलूँ, तुम भी भूलो,
हैं अलग रास्ते अपने।
होगा भी सच, भूला भी तुमने,
नये दोस्तों की खातिर मुझे।
मैं करुँ क्या, मेरा साहिल, मेरी नदिया, मेरा किनारा तुम थे,
मैं कहूँ क्या, मेरे बोल, मेरा तराना तुम ही थे ।
मैं चलूँ क्या, मेरी मंजिल, मेरा रास्ता तुम ही थे,
मैं ढूँढू क्या, मेरा दीपक, मेरी रौशनी भी तुम ही थे।
फिर भी मैंने मुस्कुरा कर, हंस कर तुझे विदाई दी,
खुश रहो, जहाँ भी, जिस किसी के संग रहो।
अब मेरी गलती ही क्या है?
काश जो एक बार कहती मुझे।
जो तुम अब भी यादों में मेरे इस कदर आती क्यूँ हो?
आती हो तो आती ही हो, जान मेरी ले जाती क्यूँ हो??
- V.P. "नादान"
दिंनाक-२०.०९.२०१४
well written!
ReplyDeleteThanx madhusudan...!
DeleteVery Nicely expressed thoughts...!!
ReplyDeleteNice thoughts...!
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