lost soul 2

Saturday 20 September 2014

मैं इस दुनिया में जीने के काबिल बन गया हूँ !!!!!!!!!!!





बहुत कोशिश की मैंने, की अपनी पहचान बनाये रखूं,
अपनी दिल की आवाज को मरने न दूँ, 
पर वही  हुआ जिसका मुझे डर था,
मैं भी इसी बिकाऊ दुनिया का हिस्सा कब बनता गया खुद मुझे ही पता न चला,
कभी बहुत ही भावुल इंसान हुआ करता था में,
किसी को रोता न देख सकने वाला,
किसी को दुखी न देख सकने वाला.
लोग कहते थे की इतना भावुक होना अच्छी  बात नही , 
तुम इस दुनिया में जी नहीं पाओगे, 
दुनिया के साथ कदम से कदम नही मिला पाओगे, 
अगर आगे जाना चाहते हो तो किसी न किसी को अपने पाँव की सीढियाँ बनाना ही होगा, 
रिश्तों को बस ऊपर-ही-उपर से गहरा दिखाना ही होगा, 
चेहरे पे झूठी  हसी का मुखौटा लगाना ही होगा.


तब मैंने कहा था -  नहीं ! ऐसा नही होगा मेरे साथ, 
अगर इसी को आगे बढ़ना कहते हैं तो में ऐसी तरक्की नही चाहता , 
मैं अपने दिल को नही मार  सकता.
पर अफ़सोस आज मैं भी इसी दुनिया का अभीन्न हिस्सा बन गया हूँ.
हर एक चीज की परिभासा ही बदल गयी है जैसे मेरे लिए....
में खुद हैरान हो गया हूँ की अचानक इतना परिवर्तन मेरे अन्दर आया कैसे ?
यहाँ तक की मेरे लिए ये प्यार  जैसे शब्दों  की भी कुछ कीमत न रह गयी, 
हर चीज में में मोल-तोल क्यों करने लगा हूँ?
हर जगह में फायदे नुक्सान की बाते क्यों करने लगा हूँ ?
जीवन की प्राथमिकताएँ बड़ी ही तेजी से बदल रही हैं.
किसी पे विश्वास   करने को  मन नहीं करता है, 
कब कौन धोखा दे जाए?  
क्या मैंने अपने दिल को निकल फेका है? 
अचानक से अपने आप में क्यों खो-सा गया हूँ.
                                    अब किसी के भी प्यार और अपनेपन पर भरोसा नहीं होता.
                                शायद  अब में झूठ भी बोलने लग गया हूँ . अपने आप से भी.
                                                            कभी में उसे बहुत चाहता था, 
                          सोचता था की यही प्यार होता है. पर अब वही feelings क्यूँ नही आती हैं.
शायद  में उससे प्यार नही करता हं अब, 
या इसमें भी business mind लगाने लग गया हूँ. 
फिर में क्यों उससे झूठ  बोल  रहा हूँ की में तुमसे बहुत प्यार करता हूँ.
लगता है की में इस दुनिया में जीने के काबिल  बन गया हूँ !!!!!!!!!!!


कभी में किसी का दिल तोडना सबसे बड़ा पाप मानता था , 
आज मुझे वही करने में बहुत आनद क्यों आता है?
किसी की आँखों में आंसू  देखना मुझे गवारा नही था, 
आज आंसू  देने की कोशिस में क्यूँ लगा हूँ?  
बिलकुल ही मशीन- सा बन के रह गया हूँ, 
जैसे बस दिमाग ही हो , दिल शायद कभी था ही नही.
किसी के सुख में शरीक नहीं होता, न ही गम बाँट लेने की आदत ही रह गयी है अब.
क्यों, आखिर क्यों ?????????

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