बस एक गुजारिश है इतनी,
फिर से मुझे तुम अब मत मिलना।
मिल भी गए ग़र भूले-भटके,
अजनबीपन का चश्मा चढ़ा लेना।
मिल जाए फिर भी आँखें अपनी,
यूँ देख कर ना मुस्कुरा देना।
हँसने को चाहे जी तेरा आदतन ,
हमदर्दी ना जतला देना।
तब माना था बातें तेरी,
वो प्यार नहीं दिल्लगी ही थी,
भूलो तुम भी हम भी भूलें,
चले हम अपने अलग रस्ते।
प्यार को अगर प्यार का नाम ना दे सकी तुम,
तो उसे कोई और नाम भी मत देना।
क्यों की मैं अब खुद को रोक न पाउँगा,
गिले-शिकवे सारे तुम पे जताऊंगा।
दिल के दर्द को दिल में दबा, तुम से हंसी-ठिठोली न कर पाउँगा,
दिल के दर्द को अब जुबां पे आने से न रोक पाऊँगा।
इसीलिए बस एक छोटी सी ख्वाइश है,
फिर से मुझे तुम अब मत मिलना।
-V. P. "नादान"
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